


भारत और बांग्लादेश के बीच तीस्ता नदी के पानी का मुद्दा एक बार फिर सिर उठा रहा है। इसमें चीन की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जा रही है, जो तीस्ता मास्टर प्लान के तहत इस पर नजर बनाए हुए है। इस बीच बांग्लादेश में चीन समर्थित तीस्ता मास्टर प्लान को लागू करने की मांग उठने लगी है। बीते सप्ताह ही इसके तत्काल कार्यान्यवन के लिए चटगांव विश्वविद्यालय में सैकड़ों छात्रों ने प्रदर्शन में हिस्सा लिया था। चीन से सहायता प्राप्त इस मास्टर प्लान को ढाका में भारत के साथ लंबे समय से रुकी हुई जल बंटवारा संधि के विकल्प के रूप में देखा जा रहा है। इस प्लान को लेकर भारत की अपनी चिंताएं हैं।
विशेषज्ञों ने भारत के लिए अहम चिंता सिलीगुड़ी कॉरिडोर से इसकी नजदीकी बताया है, जिसे चिकेन नेक कॉरिडोर भी कहा जाता है। यह एक संकरी पट्टी है जो पूर्वोत्तर भारत को देश से बाकी हिस्सों से जोड़ती है। तीस्ता नदी सिक्किम से निकलती है और पश्चिम बंगाल से होकर बहते हुए बांग्लादेश में ब्रह्मपुत्र में मिल जाती है।
भारत और बांग्लादेश के बीच वर्तमान में 1996 का गंगा जल बंटवारा समझौता सक्रिय है। यह समझौता साल 2026 में समाप्त हो रहा है। ऐसे में ढाका का एकतरफा कदम भारत की जल सुरक्षा और क्षेत्रीय सहयोग को प्रभावित कर सकते हैं। ढाका का आरोप है कि भारत सूखे के मौसम में पानी रोकता है जबकि मानसून के दौरान इसे छोड़ता है, जिससे बाढ़ का खतरा होता है।
चीन के साथ मिलकर यूनुस की चाल
इसी साल मार्च में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने चीन से तीस्ता नदी के प्रबंधन के लिए 50 वर्षीय योजना का अनुरोध किया था। चीनी कंपनियों इस परियोजना में भाग लेने के लिए तैयार हैं, ढाका ने पहले चरण के लिए 6700 करोड़ टका की मांग की है। बांग्लादेश नेशलिस्ट पार्टी समेत कई राजनीतिक दलों ने इसका समर्थन किया है।